
यह कविता मैंने कारगिल युद्ध के समय लिखी थी | पर आज भी समय कुछ
खास नही बदला है | आज भी खौफ के साये में हम जी रहें हैं | आतंक किसी समस्या का हल कभी नही हो सकता है बल्कि आतंक केवल आतंक ही हो सकता है चैन सुकून कभी नही | जो लोग आतंक के द्वारा चैन सुकून की तलाश कर रहे है क्या उन्हें कभी चैन मिला है शायद नही यदि उहें चैन मिलता तो फिर कोई ऐसा कार्य नही होता जिस पर किसी बच्चे को अनाथ होना परे | आज आतंक केवल किसी धर्म या क्षेत्र की बात नही बल्कि यह विश्व भर में एक व्यवसाय के रूप में उभर रहा है | जो धर्म और क्षेत्र की आर में चलाया जा रहा है | और अपना ऊलू सीधा करने के लिए मासूम जानो से खेला जाता है | इसकी वजह भी हम ही हैं | क्योकि हम काफी हद तक संवेदन हिन् होते जा रहे हैं और कई बार ऐसे कार्य से कोई सबक नही लेते और दूसरी घटना का इंतजार करते है जिसका परिणाम रोज हमें ऐसी घटने देखने सुनने को मिल जाती हैं और हम कबूतर की तरह आँखें बंद कर ख़ुद को सुरक्षित मह्सुश करते है|
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