शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

राजनिति बनाम राज नीती

देश का दुश्मन कौन? वो जो देश का नाम रौशन कर रहा है या वो जो देश के एक और टुकरे करने कि बात करता है ।

आज पूरे देश के सामने यह प्रश्न है कि लोकतंत्र में 'राज तंत्र' को कितनी तवज्जो देनी चाहिए । हमारी संस्कृति बृहद परिवार कि रही है पूरा देश एक परिवार है और राज और बालठाकरे जैसे नेता इस परिवार के उन कपूतों में से हैं जिन्हें यदि जल्दी नही संभाला गया तो यह परिवार आजीवन इन पर रोता रहेगा ।

ये निश्चय ही भासमा सुर से काम नही हैं जिसे जिससे वरदान मिला उसी को खत्म करने चल पड़ा।

काबिलियत तोड़ने में नही जोड़ने में है । यदि ये अपने को रहनुमा समझते हैं तो देश जोड़ें तोड़े नही । इन पर मैथिलि में प्रचलित एक कहावत "लिख अ आबई छ ता न इ मिटा ब आबई छ त दुनु हाथे " सटीक बैठती है।

ये ऐसा खेल खेल रहे हैं कि जिसमे अंतत: इन्हें कुछ नही मिलने वाला और ये भी अछि तरह जानते हैं शायद इसी कारण खुद को हर वक़्त जाताना चाहते हैं कि हम भी हैं ।

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