रविवार, 4 अक्तूबर 2009

दलित स्नेह

जबसे राहुल गाँधी ने उत्तर प्रदेश के एक गाँव में दलित के घर रात क्या गुजारी | कांग्रेसियों में दलित स्नेह उमर पड़ा है |

और हर कोई यह जाताना चाहता है की वह कितना दलित प्रेमी है और इस को प्रमाणित करने के लिए बाकायदा मिडिया में अपनी फोटो भी छपवा रहा है |

क्या गरीबों और दलितों के लिए यह वास्तविक प्रेम है या एक राजनैतिक दिखावा | क्योंकि यदि यहाँ पर वास्तव में उन लोगो की सुध लेने की बात होती तो शायद हर कोई अपने इस प्रेम का ढिंढोरा नही पिटता|

किसी व्यक्ति का अनुशरण करना एक बात है और नक़ल करना दूसरी बात | और यहाँ अनुशरण नही नक़ल हो रहा है | यह स्वयं को बस बडा दिखाने की बात है |

यदि आप किसी के लिए कुछ करना चाहते है तो यह आपको बताने की जरूरत नही है बल्कि कर दिखने की जरूरत है |

राहुल गाँधी निश्चय ही एक ऐसे व्यक्ति है जो कुछ कर दिखाना चाहते है ना की यह जताना की वह कुछ करना चाहते है |

आजादी से पहले हमारे देश में नेता किसी पार्टी विशेष के नही थे बल्कि देश के थे | और होना भी यही चाहिए |

राहुल गाँधी में भी एक ऐसे ही नेता की छवि झलक रही है जो किसी पार्टी विशेष का न होकर पूरे देश का होगा | और यदि करना है तो इनका अनुशरण करें न की नक़ल |

चुनाव के समय आने वाला दलित/गरीब मोह नेताओं के लिए बड़ा ही मोहिनी बाण है जो हर नेता इसे ब्रम्हास्त्र की तरह इस्तेमाल करता है | और यह सीधे निशाने पर लगता है |

इस बाण ने कई नेताओं को अरबपति बना दिया और जो इस बाण का सही इस्तेमाल करना नही जानते है वह इस राजनीती में कही नही टिकते है वास्तव में वे इस राजनीती पर बोझ हैं |

राजनीती के कुछ ऐसे गडरिये हैं जो हमेशा चुनाव के समय चिल्लातें है भेडिया आया भेडिया आया और आम जनता हर बार उनकी मदद(वोट) करने पहुच जाती है पर पता चलता है की वो भेडिया उस नेता के पास(जनता के सर्वांगी विकास ) उन्हें डराने अब पॉँच साल तक नही आने वाला है |

वास्तव में राजनेताओं का यही दलित प्रेम है |

Subscribe to maithil by Email

कोई टिप्पणी नहीं: